तृतीयक शिक्षा(Tertiary Education): भविष्य निर्माण की रीढ़

प्रस्तावना(Introduction)

शिक्षा किसी भी राष्ट्र की आत्मा होती है, और यदि शिक्षा को एक वृक्ष माना जाए, तो तृतीयक शिक्षा उसकी वह शाखा है जहाँ ज्ञान अपने परिपक्वतम रूप में फलित होता है। प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा जीवन की नींव रखती है, परंतु तृतीयक शिक्षा उस नींव पर व्यक्तित्व, कौशल और राष्ट्र निर्माण की इमारत खड़ी करती है। आधुनिक युग में तृतीयक शिक्षा केवल डिग्री प्राप्ति का माध्यम नहीं रह गई है, बल्कि यह नवाचार, अनुसंधान, तकनीकी विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का आधार बन चुकी है।

तृतीयक शिक्षा(Tertiary Education) क्या है

तृतीयक शिक्षा (Tertiary Education) को उच्च शिक्षा (Higher Education) भी कहा जाता है। यह माध्यमिक शिक्षा के उपरांत प्रारंभ होती है और इसमें विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, तकनीकी संस्थान, व्यावसायिक पाठ्यक्रम, ऑनलाइन डिग्री, ओपन यूनिवर्सिटी, आईटीआई आदि सम्मिलित होते हैं। इसमें स्नातक (Bachelor’s), स्नातकोत्तर (Master’s), डॉक्टरेट (PhD) तथा डिप्लोमा व प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम आते हैं।

तृतीयक शिक्षा का उद्देश्य

  1. व्यक्तित्व विकास – यह शिक्षा व्यक्ति के बौद्धिक, नैतिक, भावनात्मक और सामाजिक पक्षों को परिष्कृत करती है।
  2. कौशल निर्माण – वर्तमान समय में तकनीकी और व्यावसायिक दक्षता ही रोजगार का मूल आधार है, जो तृतीयक शिक्षा से ही प्राप्त होती है।
  3. राष्ट्र निर्माण – उच्च शिक्षा से सशक्त नागरिक, वैज्ञानिक, शिक्षक, प्रशासक और उद्यमी तैयार होते हैं, जो राष्ट्र की प्रगति के स्तंभ बनते हैं।
  4. अनुसंधान एवं नवाचार – विश्वविद्यालय अनुसंधान की प्रयोगशालाएँ हैं, जहाँ नवाचार जन्म लेते हैं और समाज को नयी दिशा मिलती है।

तृतीयक शिक्षा की महत्ता 

  1. आर्थिक सशक्तिकरण तृतीयक शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान और कौशल से सुसज्जित करती है, जिससे वह आत्मनिर्भर बनता है। इससे न केवल व्यक्तिगत आय में वृद्धि होती है, बल्कि राष्ट्र की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में भी योगदान बढ़ता है।
  2. सामाजिक न्याय शिक्षा सामाजिक समानता की कुंजी है। उच्च शिक्षा सभी वर्गों, विशेष रूप से वंचित और पिछड़े समुदायों को आगे बढ़ने का अवसर देती है। आरक्षण, छात्रवृत्तियाँ और मुक्त प्रवेश जैसी योजनाएँ सामाजिक समरसता को बल देती हैं।
  1. वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भागीदारी   आज का विश्व ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था पर आधारित है। ऐसी स्थिति में तृतीयक शिक्षा से युक्त जनसंख्या ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिक सकती है। भारत जैसे देश को “विकसित राष्ट्र” की श्रेणी में लाने के लिए यह शिक्षा अनिवार्य है।

भारत में तृतीयक शिक्षा की स्थिति

भारत में तृतीयक शिक्षा का इतिहास प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है – तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने विश्व को शिक्षा का मार्ग दिखाया। वर्तमान समय में भारत में 1000 से अधिक विश्वविद्यालय, 40,000 से अधिक कॉलेज और अनगिनत तकनीकी संस्थान हैं |

प्रमुख तृतीयक शिक्षा(Tertiary Education) संस्थान:

  • आईआईटी (IIT) – इंजीनियरिंग में उत्कृष्टता के प्रतीक
  • आईआईएम (IIM) – प्रबंधन शिक्षा का सर्वोच्च मानक
  • एम्स (AIIMS) – चिकित्सा शिक्षा में श्रेष्ठता
  • एनएलयू (NLU) – विधि शिक्षा में अग्रणी
  • आईसीएआर, आईसीएमआर, डीआरडीओ – अनुसंधान एवं विकास केंद्र

तृतीयक शिक्षा की चुनौतियाँ    

  1. गुणवत्ता की असमानता – कुछ संस्थान विश्व स्तरीय हैं, वहीं कई कॉलेजों में आधारभूत सुविधाओं का अभाव है।
  2. उच्च शिक्षा की पहुंच – ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में छात्रों तक तृतीयक शिक्षा की पहुँच अब भी सीमित है।
  3. रोजगार की असंगति – डिग्रीधारक युवाओं की बढ़ती संख्या के बावजूद बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि शिक्षा उद्योगों की मांग के अनुरूप नहीं है।
  4. अनुसंधान में निवेश की कमी – भारत में GDP का 1% से भी कम अनुसंधान में व्यय होता है, जो नवाचार को बाधित करता है।
  5. डिजिटल डिवाइड – ऑनलाइन शिक्षा के दौर में भी कई छात्रों के पास इंटरनेट या उपकरणों की उपलब्धता नहीं है। 

तृतीयक शिक्षा में सुधार के उपाय   

  1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) – यह नीति तृतीयक शिक्षा को बहुविषयक, समावेशी, लचीली और कौशल-आधारित बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।
  2. डिजिटल पहल – SWAYAM, NPTEL, DIKSHA, और MOOC जैसे प्लेटफॉर्म्स ने ऑनलाइन शिक्षा को लोकप्रिय बनाया है।
  3. विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता – संस्थानों को अकादमिक एवं प्रशासनिक स्वायत्तता देना उन्हें गुणवत्ता सुधार के लिए प्रोत्साहित करता है।
  4. इंडस्ट्री-एकेडेमिया साझेदारी – उद्योग और शिक्षण संस्थानों के बीच मजबूत समन्वय से रोजगारपरक शिक्षा संभव हो पाती है।
  5. शोध एवं नवाचार को प्रोत्साहन – “स्टार्टअप इंडिया”, “अटल इनोवेशन मिशन”, “इन्क्यूबेशन सेंटर” जैसे प्रयासों से छात्र शोध और उद्यमिता की ओर प्रेरित हो रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भारत   

विश्वविद्यालयों की वैश्विक रैंकिंग में भारत धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी दिल्ली, और आईआईएससी बेंगलुरु QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में स्थान पा चुके हैं। इसके अतिरिक्त, भारत अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए एक आकर्षण बनता जा रहा है। “स्टडी इन इंडिया” जैसे अभियान से विदेशी छात्रों को भारत की ओर आकर्षित किया जा रहा है।

महिला एवं वंचित वर्गों के लिए तृतीयक शिक्षा (Tertiary Education)  

वर्तमान समय में लड़कियाँ उच्च शिक्षा में उल्लेखनीय प्रगति कर रही हैं। चिकित्सा, प्रशासन, तकनीकी और शोध जैसे क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति बढ़ रही है। अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और दिव्यांग जनों के लिए विशेष योजनाएँ (छात्रवृत्तियाँ, फीस छूट, आरक्षण) लागू की गई हैं, जिससे समावेशी शिक्षा संभव हो रही है।

तृतीयक शिक्षा और आत्मनिर्भर भारत   

“आत्मनिर्भर भारत” की संकल्पना बिना आत्मनिर्भर युवाओं के संभव नहीं है, और उसके लिए उच्च गुणवत्ता वाली तृतीयक शिक्षा आवश्यक है। नवाचार, स्टार्टअप, तकनीकी दक्षता, और नेतृत्व विकास जैसे तत्व तभी फलीभूत हो सकते हैं जब शिक्षा ज्ञान के साथ कौशल भी प्रदान करे।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में तृतीयक शिक्षा     

NEP 2020 के अंतर्गत तृतीयक शिक्षा को लेकर कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखे गए हैं:

  • 4-वर्षीय स्नातक कार्यक्रम
  • एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (ABC)
  • अंतरविषयक पाठ्यक्रम
  • स्नातक से सीधे पीएचडी में प्रवेश
  • राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान (National Research Foundation)
  • गुणवत्ता आश्वासन हेतु NAAC का सुदृढ़ीकरण
  • HECI – उच्च शिक्षा आयोग की स्थापना 

यह नीति भारत को “ज्ञान महाशक्ति” बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।

निष्कर्ष   

तृतीयक शिक्षा केवल एक डिग्री अर्जन का साधन नहीं, बल्कि वह यज्ञ है जिसमें छात्र अपने स्वाभाविक गुणों की आहुति देकर एक सशक्त, विवेकशील और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक के रूप में पुनर्जन्म लेता है। यह शिक्षा व्यक्ति को न केवल एक अच्छा पेशेवर बनाती है, बल्कि उसे संवेदनशील, सहिष्णु और उत्तरदायी नागरिक भी बनाती है।

आज जब विश्व नवाचार, ज्ञान और प्रतिस्पर्धा के युग में प्रवेश कर चुका है, तब भारत को भी अपने युवा जनसंख्या के बल पर वैश्विक नेतृत्व करना है। यह लक्ष्य केवल और केवल समावेशी, गुणवत्तापूर्ण और सुलभ तृतीयक शिक्षा से ही संभव है।

प्रेरणास्पद वाक्यांश     

शिक्षा वह शक्तिशाली हथियार है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं।” – नेल्सन मंडेला

तृतीयक शिक्षा वह दीपक है जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का आलोक फैलाता है।”

यदि भारत को विश्वगुरु बनना है, तो उसे अपनी तृतीयक शिक्षा प्रणाली को विश्व स्तरीय बनाना ही होगा।”

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